मानव 

देखो इंसानियत से भागता आज मानव 
मिथ्या का आवरण ओढ़ता मानव 
अपनी छवि को संवारने में मदहोश मानव 
दूसरों के कंधो पर से वार करता आज मानव 
अपने अहंकार में रिश्तों की बुनियाद हिलाता मानव 
प्रेम ,प्यार ,वात्सल्य को दरकिनार कर विश्वाश को दंश देता मानव ......

देखो इंसानियत से भागता आज मानव 
इर्ष्या ,द्वेष का आवरण  ओढ़ता  मानव 
अपने अहंकार  में मदहोश मानव 
छोटे   मोटे  विवाद  को  विषाद  बनाता  मानव 
जीवन अर्पर्ण से खिलवाड़  करता मानव 
घर ,गली ,शहर ,नगर  में हिंसा  फैलता मानव ...........

.देखो धरती से विश्वाशघात  करता मानव 
प्रदुषण ,वन्नोमूलन ,और हिंसा का आवरण ओढ़ता  मानव 
अपने निज स्वार्थ की खातिर धरती का विनाश करता मानव 
लहुलुहान होती माटी पर अपने विवेक को खोता मानव 
बर्बरता व् पशुता सा जीवन जीता मानव 
 खून का प्यासा बन रौंद रहा मानवता को अब मानव .......

.देखो प्रेम को केसे कुचल रहा आज मानव 
पुरातनपंथ का आवरण ओढ़ता मानव 
अपनी परवरिश की बलि लेता मानव 
अपनी पंचायतो के तालिबानी फैसलों से भय फैलता मानव 
चढ़  रहे भेंट  युवा वक़्त, तकदीर और मौत से विभस्त  मानव 
प्रगतिशील समाज पर प्रतिबंधो को प्रमाणित करता मानव .........

देखो कन्या रहित परिवेश चाहता मानव 
बेटों की चाह में समाज को गतिहीन बनाता मानव 
अपने निज हित की खातिर भ्रूण हत्या फैलाता मानव 
बेटों से तिरस्कृत  जीवन को बेटियों के लहू से सींचता मानव 
कन्या को गर्भ में कुचलकर खूब इतराता मानव 
दहेज़ के विषाद से बचने के लिए हत्यारा बन रहा अब मानव .....

Popular posts from this blog