मन 

खोया था मन जब अंधकार के भवर में ,
मानव के अनबुझे -अनसुलझे व्यहवहार में ,
जब मरण का मार्ग दिखा गया कोई ,
तब दूर क्षितिज से माँ तुम्हारा साया ,
उतर आया जीवन में बन सुदृढ़ सहारा ,
धसते अस्तित्व के अंधियारे गलियों से
मन में कोहिनूर बन उतर आई तुम माँ
अब जीवन मरण का सबब जान गयी ,
मानव द्वारा जीवन की इस बुझती चिंगारी ,
इस मन ने अब वैराग्य रुपी हौसले की अलख जगा ली !

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