पानी का मोल प्यासा ही समझे !

पानी का कोई रंग नहीं , को भेद नहीं ,यह तो सृष्ठी के समस्त जीवों के लिए प्रकृति की अनमोल वरदान है !इसके आगे कोई अमीर नहीं ,कोई गरीब नहीं ! इसकी कमी से प्राणों के लाले पड जाते है ! किन्तु इंसानियत की सबसे भी विडम्बना ........पानी को व्यर्थ बहा देगे किन्तु किसी प्यासे को पानी की एक गिलास पिलाने में बहुत कस्ट आता है !प्यासे पथिको की चिंता तो है नहीं ,तो अन्य जीव तो क्या करें !आज हम में से कितने लोग दूसरों के लिए जीते हैं ! कहाँ गए अब पिऔउ या धर्मार्थ जल ! अब तो जल क्या ईमान बिकता है !सरकार द्वारा शहरों में जल आपूर्ति के साधन तो ठीक किन्तु हमारा अपना योगदान कहाँ गया ! वे लोग जिन्हें प्यासे की प्यास का अर्थ मालूम है और इस दिशा में कार्यरत हैं ,उन स्वयंसेवियों को कोटि -२ नमन !
 

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