पूर्व प्रकाशित एक और रचना आपके समक्ष 

ईर्ष्या
जब दुनिया फूलों के बीच है खिलती ,
दर्द का रिश्ता बन मैं हूँ उभर आती ,
निर्झर बहते स्नेह धारा में हूँ ज्वालामुखी सी ,
तेरे भीतर से दहकती यह मेरी ज्वाला सी ,
हर कदमों पर काँटे बन जो उभर आती !

बढती तेरी संवेदनाओं की मैं दर्पण सी ,
तेरी टीस बन जाती मेरी टीस सी ,
तुम्हारी दुर्दशा मेरी सकून बन जाती ,
अपने इस ईर्ष्यालु संसार में मुस्कुराती ,
पल पल तड़पती रूहें देख मैं इठलाती !

तेरे मन का लहू,मेरी प्यास बुझाती,
तेरा संताप ,मेरे आभामंडल बन जाती ,
तेरी चिंता मेरी ख़ुशी बन जाती,
जो तू न मुझे बुलाती ,तो कैसे तुझे रिझाती
बन ज्योति तेरे हृदय केसे यूँ समाती !

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