दैनिक भास्कार में मेरे विचार 

नारी सुरक्षा व् अधिकार 

नारी के लिए स्थापित  तमाम संवैधानिक  उपबन्धों के बावजूद नारी जाति  अनिवार्य रूप से शोषित ,दलित और अधिकार विहीन है ! नारी की सुरक्षा व् अधिकार के कर्णधार तो स्वयं  पुरुष प्रधान समाज है ,जिसमें नारी को केवल प्रताड़ना  का अधिकारी समझा जाता रहा है ! कानून व्यवस्था  की आड़ में जब रक्षक ही भक्षक  की भूमिका निबाह  रहे हो तब किताबी अधिकारों व् नियमों में फेर बदल करने का क्या औचित्य है ! महत्वपूर्ण यह है की समूर्ण समाजिक व्यवस्था में ही सुधार लाया जाए ! स्त्रियों के प्रति अपराध बढने की मुख्य जिम्मेदारी समाज का चारित्रिक पतन है ! नारी की सुरक्षा के कारकों का उन्मूलन नितांत आवश्यक है ! नैतिक शिक्षा के साथ साथ ,सुधार गृह भी चलाने होंगे  जहाँ  पर पिछड़े वर्ग व् अशिक्षिक्त समाज के सभी सदस्यों को नारी की गरिमा गाथा ,व् उनके समाज के प्रति प्रगति  की दिशा में बढ़ते कदम की शिक्षा  दी जा सके ! हर क्षेत्र में वर्चस्व कायम करने वाली महिला अपनी प्राकृतिक कमजोरी के कारण कब तक शोषित होती रहेगी ! मानवाधिकारों के बीच सडक पर अस्मत की धज्जियाँ  उड़ते देख यदि समाज का नजरिया गांधारी सरीखा  रहेगा तो निश्चित ही समाजिक पतन बढ़ता जाएगा ! जहाँ   पर एक ओर कुत्सित मानसिकता महिला सुरक्षा के आड़े आ रही है वहीं  पर स्वयं महिलाओं द्वारा आधुनिक दिखने के नाम पर स्वयं  को भोग्या के रूप में प्रस्तुत करना ही  कुरूप मानसिकता को बढावा दे रहा है जो सबसे बड़ा व् विचारणीय विषय है ! आएँ  सभी मिलकर इस समस्या के उन्मूलन की दिशा में सकरात्मक कदम उठाएं ! याद रखें " अच्छी व्यवस्था ही सभी महान कार्यों की आधारशिला है।" ~ एडमन्ड बुर्क

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