सहनशीलता 

सहनशीलता  का अर्थ है अपने भीतर शील प्रवृति एवं सहने की शक्ति का समायोजन करना ! सहनशीलता द्वारा मनुष्य कठिनतम परिस्तिथि में भी स्वयं को असहाय नहीं समझता ! सहनशीलता एक आनुवंशिक गुण न होकर अर्जित गुण है  जो समय व् परिस्तिथि के अनुरूप व्यक्ति के अंदर विकसित  होती चली जाती है ! आत्मविश्वास  यदि हमारे स्वाभाव में प्रबल हो तब हम स्वयं को सहनशीलता की परिपाटी में विजयी साबित कर पायेंगे ! मनुष्य में यह गुण तभी आएगा जब वह किसी भी बात से व्यग्र , उग्र या उतेजित न होकर अपने व् अपने समाज में रहने वाले लोगो के विचारों के साथ तालमेल बैठाते  हुए ही अपने निर्णय आगे लायें !
सहनशील होने के लिए हमे  आत्मविश्वास के साथ क्षमा  भाव भी विकसित  करना होगा जिससे हम दूसरो के  वचनों  व् कर्मों से प्रभावित न हो पाएं !हमे अहंकार  दिखाई ही नही देता !पर उससे होने वाले नुक्सान का बोध देर से होता है !वाणी और व्यवहार  व्यक्ति के चिंतन  व् व्यक्तित्व की खरी कसौटी है ! समयित बोलने वाले असम्यित बोलने वाले से अधिक आत्मविश्वासी  और उन्नंत ह्रदय वाला होता है !छोटी-छोटी  प्रतिक्रियाओं में हम अक्सर बड़े फैसले कर बैठते हैं।  भूल जाते हैं कि हमारे इन फैसलों से रिश्ते खंडित हो  जाते हैं, भावनाएं तड़क जाती हैं। अपने क्रुद्ध व्यवहार की  प्रतिक्रिया से हमें सब वापिस  मिल जाता है, पर रिश्तों की नीव भी उजड़  जाती है ! सहनशील व्यक्ति अल्पभाषी व् मृदुभाषी होता है ! हमारी वाणी में वशीकरण  मन्त्र  होते है जिसका इस्तेमाल  करने का सलीका हमारे भीतर होना चाहिए ! आत्मसम्मान  के साथ साथ  दूसरे   के स्वाभिमान को भी उतना ही सम्मान तभी दे पायेंगे जब हम अपने ह्रदय  में  रुपी सहनशीलता  कमल को खिला दें ! शुभ विचार परमार्थ के मार्गी है जो एक आत्मविश्वासी सहनशील व्यक्ति  के  मस्तिक  में पनपते हैं ! प्रेम एक आत्मिक गुण है  इसे जताया नही जाता अपितु निभाया  जाता है जो एक सहनशील  व्यक्ति  की पहचान होती है !सहनशीलता रुपी गुण की प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम उन कारणों  को समझने होंगे जिनकी वजह से हम अपना मानसिक असंतुलन खोकर दूसरों के साथ दुर्व्यह्व्हार करने लगते हैं !आत्मज्ञान ही मनुष्य को सहनशील बनता है जो सत्संग द्वारा प्राप्त होता है! जो लोग प्रतिकूल परिस्तिथि में स्वयं को समयनुसार ढाल लेते हैं और समय के अखंड प्रवाह में सहनशीलता के साथ बहते बहते एक दिन पूज्य शालिग्राम बन जातें हैं तो ऐसे लोग हमारे आदर्श बन जाते हैं व् महापुरुष कहलाते हैं ! तो आयें सहनशीलता रूपी गुण  को अपनाकर  अपना जीवन उन्नत बनाएं !


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