कुरीतियाँ
इस धरा को यदि ध्यान से समझें तो यह की वस्तुत: सारी सृष्टी की आधारभूत शक्ति नारी है किन्तु उसने सदियों से जन्मदात्री होने के साथ - साथ यमराज का किरदार भी बखूबी निभाया है व् आज भी इस ओर प्रेरित है !यदि हम नारी के अन्य शब्द का विश्लेषण करें "औरत " तो पाएंगे उससे जुड़े तो भावपूर्ण शब्द -और ,रत ,अर्थात "अधिक इच्छा ",इसके विपरीत पुरुष का भाव पुरुषार्थ ,सृष्टी की रचना का उद्देश्य इच्छा से अधिक पुरुषार्थ हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए ! किन्तु नारी इस मार्ग में सर्वाधिक अवरोधक बन कर खडी है !
यह वह जीव है जिसकी तृष्णा से समस्त जगत विशुब्ध है !समाज में व्याप्त जितनी भी कुरीतियाँ हैं उनमें औरत की भूमिका अग्रणीय है !दया की सागर व् देवितुल्य स्थान पाने वाली इस जीव की भूमिका आज के सन्दर्भ में घर ,परिवार व् समाज कल्याण में न होकर विघटन की ओर है !भ्रूण हत्या ,कन्या -बहु प्रतार्ण ,दहेज़ हत्या ,लिंग भेद व् अन्य कुरीतियों को बढ़ावा देने में एक औरत ही दूसरी औरत की दुश्मन बनी बैठी है ,विरले अलग विचारों वाली औरतों के मार्ग अवरोधक और कोई नहीं स्वयं औरत ही तो है !
जब तक नारी एक दुसरे को समभाव नहीं देखेगी तब तक उसके अस्तित्व का पुरुष प्रधान समाज में कोई वर्चस्व रही रहेगा !तब तक उसका मानसिक ,शारीरिक व् सामाजिक शोषण होता रहेगा !सर्वप्रथम अपनी कमजोरियों से लड़ना होगा !क्या समाज सुधारना कोई मुश्किल कार्य है ,नहीं , बस नारी जन चेतना की आवश्यकता है ! सर्वप्रथम अपने घर ,परिवार में नारी को सशक्त बनाएं तत्पश्चात समाज स्वयं सुधर जायेगा !
पुरुष की भी भूमिका नकारी नहीं जा सकती ,यदि वह कलुषित मानसिकता को बढ़ावा न दें अपितु सदाचार से अपने पिता ,पति व् पुत्र की भूमिका निभाए तो बढती कुरीतियों पर लगाम लगाया जा सकता है !
कुरीतियों रहित संसार स्वर्ग के समान !
सर्वाधिकार सुरक्षित !
इस धरा को यदि ध्यान से समझें तो यह की वस्तुत: सारी सृष्टी की आधारभूत शक्ति नारी है किन्तु उसने सदियों से जन्मदात्री होने के साथ - साथ यमराज का किरदार भी बखूबी निभाया है व् आज भी इस ओर प्रेरित है !यदि हम नारी के अन्य शब्द का विश्लेषण करें "औरत " तो पाएंगे उससे जुड़े तो भावपूर्ण शब्द -और ,रत ,अर्थात "अधिक इच्छा ",इसके विपरीत पुरुष का भाव पुरुषार्थ ,सृष्टी की रचना का उद्देश्य इच्छा से अधिक पुरुषार्थ हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए ! किन्तु नारी इस मार्ग में सर्वाधिक अवरोधक बन कर खडी है !
यह वह जीव है जिसकी तृष्णा से समस्त जगत विशुब्ध है !समाज में व्याप्त जितनी भी कुरीतियाँ हैं उनमें औरत की भूमिका अग्रणीय है !दया की सागर व् देवितुल्य स्थान पाने वाली इस जीव की भूमिका आज के सन्दर्भ में घर ,परिवार व् समाज कल्याण में न होकर विघटन की ओर है !भ्रूण हत्या ,कन्या -बहु प्रतार्ण ,दहेज़ हत्या ,लिंग भेद व् अन्य कुरीतियों को बढ़ावा देने में एक औरत ही दूसरी औरत की दुश्मन बनी बैठी है ,विरले अलग विचारों वाली औरतों के मार्ग अवरोधक और कोई नहीं स्वयं औरत ही तो है !
जब तक नारी एक दुसरे को समभाव नहीं देखेगी तब तक उसके अस्तित्व का पुरुष प्रधान समाज में कोई वर्चस्व रही रहेगा !तब तक उसका मानसिक ,शारीरिक व् सामाजिक शोषण होता रहेगा !सर्वप्रथम अपनी कमजोरियों से लड़ना होगा !क्या समाज सुधारना कोई मुश्किल कार्य है ,नहीं , बस नारी जन चेतना की आवश्यकता है ! सर्वप्रथम अपने घर ,परिवार में नारी को सशक्त बनाएं तत्पश्चात समाज स्वयं सुधर जायेगा !
पुरुष की भी भूमिका नकारी नहीं जा सकती ,यदि वह कलुषित मानसिकता को बढ़ावा न दें अपितु सदाचार से अपने पिता ,पति व् पुत्र की भूमिका निभाए तो बढती कुरीतियों पर लगाम लगाया जा सकता है !
कुरीतियों रहित संसार स्वर्ग के समान !
सर्वाधिकार सुरक्षित !