Posts

Showing posts from April, 2014
Image
-बुत -- ________________________ सारा परिवार आज बहुत खुश था ! शहर के मशहूर मॉल " फ्रेंडशिप " में विनोद ने अपने बेटे माणिक के जन्मदिन की पार्टी रखी थी ! सभी मिलकर नाच गा रहे थे किन्तु माणिक की छोटी बहिन मृदुला का ध्यान कहीं और था ! सबकी नज़रे बचाकर वह मॉल की खिड़की से पार्क में स्थापित एक झुकी बुत को लगातार देखने लगी उसे उस बुत में अपनी दादी नज़र आने लगी और वह रो पड़ी ! माँ पापा बहुत बुरे हैं ! उन्होंने मेरी बूढी दादी जिसकी कमर ऐसे ही झुकी रहती है उन्हें गाँव में अकेले छोड़ कर यहाँ आ गए है ! दादी भी तो अकेली होगी और उन्हें कितना बुरा लगता होगा ! कुछ सोचकर मृदुला ने दो गुब्बारे ,थोड़ा केक और थोड़े पैसे जो उसे अभी एक अंकल ने दिए थे उन्हें लेकर वह चुपचाप मॉल के पार्क में आ गई जहाँ पार्टी में आए बच्चे झूला झूल रहे थे ! मृदुला उस सफ़ेद मूर्ति के पास गई और बोली - " दादी आप सारा दिन ऐसे क्यों खड़ी रहती हो ,थक जाओगी , आज भैया का बर्थडे है देखो मैं तुम्हारे लिए केक और पैसे लाई हूँ और ये हैं गुब्बारे इनसे खेला करो देखो इसमें मैं और माणिक भैया दिख रहे है न , तो अब आप ...
पतझड ********** पत्ते पत्ते सूख कर दरख्त से फिर बिछड़ गए साथ एक दूजे का छोड़कर जब्त से पिछड़ गए अहसासों के कालीन बन सरे राह बिखरे ऐसे कि दूर ही सही चेतना से जाने क्यों फिर अकड़ गए हवा संग मिलकर जब आंख मिचौली खेल लिया बहुत लगा थककर चूर होकर वे सब यहाँ वहाँ पड़ गए देखता रहा दरख्त अपने जिंदगी में उनका का भेद साख से गिरकर एक दिन वे पत्ते भी सड़ गए बेसिम्त जिंदगी का यह अफसाना सिखा दिया उसकी रज़ा से फ़क़्त सब बाग़ क्यों उजड़ गए अजल से फ़ना होने का दस्तूर मैं निबाहता गया फ़जाओं में बहारों की हक़ीक़त सुन तुम बिगड़ गए ________________सुनीता शर्मा