किताबे **** कुछ किताबे.. होती समय साक्षी है, कुछ मन मोहिनी सी, कुछ उबाऊ भी जो स्लैबों की शोभा मात्र बन रह जाती हैं, परत दर परत धूळ का लिबास ओढ़े तो कुछ होती ऐसी भी जो . कौतुहल से बेसब्र .. अपने उद्धारक ... पाठक की ओर ... अपनी रंगीन जिल्दों का ... जादू बिखेरना चाहती है |